मंगलवार, 30 जून 2015

उनीन्दी आँखें

अक्सर उसको मैंने देखा आँखे मिचते हुए,
शायद खुली आँखों से ढ़ेरों सपने देख लिए थे!

शायद दो बूँद खुशी कि अटक गई थी कहीं,
या धूआँ दीये का, "काजल" बन के पसरा था वहीं!

शायद आँखें चुँधिया गई थी किसी उम्मीद से,
या चूल्हे कि आग दमक कर बिखर गई थी वहीं!

शायद वक्त मुठ्ठी से फिसलकर जा रहा था कहीं,
या कुछ अरमान जिन्दा दफन हुए थे वहीं!

वो जगी रही ताउम्र शायद, इसलिए मैं 'सोया' न रहा।
वो बिछड़ गई सफर में कहीं, इसलिए मैं 'खोया' न रहा॥

#IndebtedForever #MissYou #कृतज्ञ

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