शनिवार, 19 जून 2010

साये

साये
मुड़ के पीछे जो कभी देखा होता,
थोड़ी दूर पे हमको कहीं पाया होता।

हम तो साये से हैं तेरे,
दूर तुझसे कहीं नहीं जाते॥


रूह तो छोड़ दे तुझे कभी,
हम तो दामन भी नहीं छोड़ पाते।

ये तो चकाचौंध है नयी दुनिया की,
जो तुझे साये भी नज़र नहीं आते॥


रौशनी तेज़ हो तो नज़र दगा दे जाती है,
सब्र कर लिया था हमने भी यही सोचकर।
ज़िक्र-ए-वफ़ा तो खीज़ है इस रौशनी की
वर्ना हम भी खुदा नहीं हो जाते!


#AllThatGlittersIsNotGold #Shadow

शुक्रवार, 4 जून 2010

मेरा मन

मेरा मन
आकाश की ऊँचाइयों को छूने की ताक में था मन।
पिंज़रे की कैद से छूटने की ताक में था मन॥
 
सागर की गोद में हींडोले की चाह में था मन।
सावन में भीग जाने की चाह में था मन॥

हरे खेतों में मंडराने की चाह में था मन।
पके आमों का रस पीने की चाह में था मन॥

किसी जीवनवृति से व्यथित है मेरा मन।
विधि की वीडबंना से शापीत है मेरा मन॥

#MyDilemma

वजूद

दिल के दरवाज़े पे तेरे दस्तक जो देनी पड़े
तो घर की चाभियों का सबब क्या है?

वक़्त - बेवक्त ज़िक्र-ए-वजूद करना पड़े
तो घर के होने का मतलब क्या है?

मंजिल एक है और रास्ता भी वही
तो जुदा कश्तियों का मकसद क्या है?